Tuesday, March 3, 2015

प्रत्युक्ता


इंजन की सीटी पर गार्ड ने झंडी लहराई
खड़ा था दरवाज़े पर, यादें घूमड़ आई|
बढ़ी आगे गाड़ी, अपनो की तस्वीर धुन्धुलाई .
पलकों की खिड़की पर कुछ बूँदें मिलने आईं|

दो पटरियाँ जो कभी ना मिलेंगी,
ले चली मुझे मिलाने,
एक नये पते से एक नये सपने से,
कुछ नये लोग, मुझ ही जैसे मुझसे|

 पहुँचा अपनी मंज़िल पर,
लगा मिला हूँ कुछ आइनो से,
एक अजीब सी थी झुंझलाहट,
अकेलेपन में बसी सासों की थी आहट|

इसी बीच एक तूफान उठता है,
खामोशी तोड़ता दिलों को जोड़ता.
मुझे झक्झोर जाता है|
शायद यही उधभव कहलाता है|
तूफ़ा में अपनो से बिछड़े, बहुतों से मुलाकात हुई
उनसे मिलके लगा जैसे अपनों से बात हुई|
कोई मेरी ही उमर का, नाम अंकित
करने का संकेत देता है|
अपने आप से अपेक्षा करती
गुमसुम श्रेया भी है|

अमेया की सुनकर लगा
प्र-कृति से ज़्यादा बोल गया,
अनूप अनुराग भरी यादों को संजोने में खो गया|
ऐक रॉबिन-हुड नवी भी है,
खुद को ताराश्ते अगम राहुल और तृप्ति भी हैं|
बातों के मांझो में उलझाता तनुज है,
उसका लहज़ा कानों में  अमृत घोलता है|

सावन के मौसम में शरद सा एहसास है
खिलखिलाती अमीशा किरणो का आभास है|
मेरे सवालों में अटकी,
मेरी मुस्कुराहट का जवाब इन्ही में पता हूँ
शायद इन से ही मिलके प्रतियुक्ता कहलाता हूँ

for NICMAR juniors batch 2015