Sunday, August 14, 2016

समर १९९९

गाडी अब तेजी से द्रास की ओर बढ़ चली थी। आशु अब पीछे की सीट पर जा बैठा। हल्का सा उनींदा ,रास्ते में मश्कोह ,बटालिक,करगिल के बोर्ड और ऊंचे पथरीले पहाडो के दृश्य उसे १७ वर्ष पूर्व १९९९ की यादो में ले गये  जब वो १० वर्ष का था।

विद्यालय में ग्रीष्मावकाश की शुरुआत हो चुकी थी और इंग्लैंड में एकदिवसीय क्रिकेट विश्व कप चल रहा था।
मई की दोपहरी, घर में माँ और दादी अक्सर भोजन निपटा कर सो जाया करती थी। आशू और विशू बारी बारी से वीडियो गेम खेला करते और फिर दूरदर्शन पर मैच देखते। आशू मैच के दौरान अपनी क्रिकेट डायरी बनाया करता था। राजस्थान पत्रिका ने तभी से रंगीन खेल पृष्ठ छापना शुरू किया था, उन्ही में से कतरने काट काट कर पिछले साल की पुरानी डायरी में चुपकायी जाती। उसे अक्सर पिताजी की शेविंग वाली केंची से अखबार काटने के लिए डांट पिटा करती थी। ये बात तो उसे आज तक समझ नहीं आयी की कागज काटने से शेविंग वाली केंची की धार कैसे खराब हो जायेगी। माँ भी उसे कतरने काटने पर टोकती क्योंकि अब यह अखबार उनकी अलमारियों में बिछाने के काम भी नहीं आ सकते। इस कार्य के लिए दोपहर का समय ही सबसे मुफीद होता था जब शांति से वो अपना काम कर सकता था।

तब गूगल की सुविधा नहीं हुआ करती थी। सभी आंकड़े , नए पुराने कीर्तिमान अलग अलग रंगों के स्केच पेन से अंकित करके आशू अपनी डायरी बनाता था। विश्वकप में भारत अपना पहला मुकाबला दक्षिण अफ्रीका से हार चुका था, दूसरा ज़िम्बावे से था। सचिन पिता की मृत्यु की वजह से स्वदेश वापिस लौट गए थे। भारत ने उस खेल में  ५० से अधिक अतिरिक्त रन  दिए और आखिर में ३ रन से मैच हार गया। अब सुपर सिक्स मुकाबलो  में जाने के लिए भारत को सभी शेष मुकाबलो को जीतना ज़रूरी था। अगला एकदिवसीय केन्या से था जिसे द्रविड़ और तेंदुलकर के शतकों की बदौलत भारत ने आसानी से जीत लिया। पिता की मृत्यु के बाद यह सचिन का पहला वापसी मैच था। २६ मई को भारत का मुकाबला श्रीलंका से था। गांगुली -द्रविड़ की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी भारत ने ३७३ रन का विशाल लक्ष्य रखा। गांगुली ने किसी भी भारतीय द्वारा एकदिवसीय में सर्वाधिक रन बनाने का कीर्तिमान अपने नाम किया। भारत की पारी समाप्ति पर आशु अपने भाई विशू के साथ कॉलोनी के मित्रो के साथ खलने चला गया। घर में उस दिन एक छोटा समारोह था जिसमे कुछ मेहमान आने वाले थे। आशु के पिताजी ने घर के बाहर बगीचे में मैच देखने की व्यवस्था की थी। आशु जब खेलके लौटता हैं तो वहां माहौल बदला हुआ सा था।

भारत -श्रीलंका मुकाबला छोड़कर सब समाचार सुन रहे थे। परिवार के वरिष्ठों की बातें खेल से हटकर पाकिस्तान और कश्मीर पर जा अटकी। यही पहली बार था जब उसने करगिल, मुजाहिद्दीन और घुसपैठिये जैसे शब्द सुने। अभी तक कश्मीर से हर रोज़ कोई न कोई छुटपुट घटना की सूचना आती रहती थी। उसके पिताजी भी पिछले ही वर्ष कश्मीर किसी कार्य के सिलसिले में गए गए थे और उसके लिये कश्मीर विलो का बल्ला लेके आये थे। परंतु आज मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर था। एक दो बार पूछने के बाद बाबा ने उसे बताया की भारत और पकिस्तान में जंग की आधिकारिक शुरुआत हो गयी हैं जिसका नाम ऑपरेशन विजय हैं। उसी दिन भारत ने कारगिल की पहाड़ियों पर बैठे घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए वायुसेना के इस्तेमाल की इजाजत दी। रात को पिताजी ने उससे एटलस मंगवाई और दोनों भाइयो को बैठा के करगिल और आस पास के इलाको के बारे में समझाया।

उस दिन से काफी कुछ बदल गया। सवेरे अखबार आते ही अब १४ वे पृष्ट से ध्यान पहले पृष्ट पर आ गया। हर रोज़ सीमा पर जवानों के शहीद होने की खबरे आने लगी। शहर से सेना में कप्तान काफी दिनों से लापता थे। दुश्मन द्वारा कुछ जवानों के शवो को क्षत विक्षित करने की खबरे देखकर उसका दस वर्षीय बाल मन अक्सर गुस्से से भर जाता था। राज्य भर में कारगिल में शहीद हुए जवानों के शव आने की शुरुआत हो गयी। अखबार " जब तक सूरज चाँद रहेगा" जैसे नारो और अंत्योष्टि की खबरों से अटे पड़े थे। नजदीकी छावनी से अक्सर सेना के ट्रकों  और टेंको के, सीमा की तरफ सञ्चालन की आवाज़ घर तक पहुंचा करती थी। दोनों भाई सायकिल पर उनको देखने निकल पड़ते और तब तक जय हिन्द के नारे लगते और तालिया बजाते जब तक वे आँखों से ओझल न हो जाए।

विश्व कप में अब भारत के साथ साथ पकिस्तान के मुकाबलो में भी रूचि बढ़ गयी। भारत, श्रीलंका के बाद इंग्लैंड को हराकर अगले दौर में प्रवेश कर चूका था। यूं तो पकिस्तान भी अंतिम छह: में स्थान बनाने में कामयाब रहा परंतु बहुत कमज़ोर मानी जाने वाली बांग्लादेश से उसकी हार ने देश को काफी ख़ुशी दी। खेल के बाद टीम के कप्तान वसीम  अकरम ने कहा "वी लॉस्ट तो आवर ब्रदर्स", भारत में मजाक चल पड़ा कि जिस दिन ये हमसे हारेगा बोलेगा "वी लॉस्ट तो आवर फादर्स " , भारत के लिए अब पकिस्तान से मुकाबला जीतना बेहद अहम था।  सीमा पर जब देश युद्ध में हो तो क्रिकेट में दुश्मन से हार शायद ही कोई भारतीय पचा पाता। अहसास था की भारत भले ही विश्व कप में आगे न बढे परंतु पाकिस्तान को पटखनी ज़रूर दे। ८ जून १९९९ को पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने २२७ का साधारण लक्ष्य रखा जो सईद अनवर की तेज शुरुआत के बाद और भी बौना साबित हो रहा था।  परंतु श्रीनाथ और वेंकटेश की धारदार और असाधारण गेंदबाज़ी ने भारत को खेल में बनाये रखा। मोईन खान का विकेट गिरते ही भारत में दिवाली का दौर शुरू हो चूका था। वेंकेटेश प्रसाद का २७/५ जीवन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन रहा। भारत जो अपने आगे के मुकाबले हार कर प्रतियोगिता से बाहर हो गया था, उसके  के लिए यही विश्व कप की जीत थी। पकिस्तान विश्व कप के निर्डनायक मुकाबले तक पहुंचा और ऑस्ट्रेलिया से हार गया।
 दूसरी तरफ करगिल में अभी तक भारत को सीमा पर कोई बड़ी सफलकता नहीं मिली थी। परंतु शायद क्रिकेट की जीत ने सीमा पर लड़ रहे जवानों पर मनोवैज्ञानिक असर तो डाला ही। जल्द ही १३ जून को भारत को तोलोलिंग की पहली बड़ी सफलता मिली और कुछ हफ़्तों बाद टाइगर हिल पर भारतीय ध्वज फहराया। इसके बाद के महीने भर में भारत ने लगभग सभी बड़ी चोटियों पर पुनः अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया। चोटियों पर तिरंगा पकडे जवानों की तस्वीरे अब अखबार के पहले पृष्ठ पर थीं। इसी बीच ग्रीष्मावकाश समाप्त हो गया। विद्यालय में शहीदों के लिए विशेष प्रार्थना सभा हुई। २ महीने बाद कैप्टन अमित भरद्वाज का शव जयपुर लाया गया तो पूरे विद्यालय समेत शहर की आँखे नम थी । २६ जुलाई को प्रधानमंत्री ने युद्ध में विजयश्री की घोषणा कर दी। घर में शहीदों के लिए  दिया जलाया गया।

इन्ही यादो के झरोखों  के बीच गाडी अब द्रास में बने युद्ध स्मारक पर पहुँच चुकी थी। उसकी आंखो की पलकों पर हलकी बूँद सी आके रह गयी। उसके मन में विचार आया, एक १० वर्षीय बालक के लिए देशभक्ति और राष्ट्रवाद का अहसास कितना मासूम और सरल था। वो भले ही सेना में न हो और न ही किसी खेल में राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता हो परंतु अपने नागरिक धर्म और कर्तव्यों का निर्वहन करके भी सही माएने में देशभक्ति का परिचय दे सकते हैं। समझ नहीं आता आज कुछ किताबे पढ़कर और किसी विचारधारा से ओतप्रोत उसी के हमउम्र २६-२७ वर्षीय देश के खिलाफ नारा लगाने और उसके टुकड़े टुकड़े करने की सोच रखने की हिम्मत कैसे जुटा लेते हैं।