कार्टूनिस्ट लक्ष्मण हमारे बीच नहीं रहे। हम कार्टूनों का कार्टून बनाने वाला एक कार्टून हमारे बीच से चला गया। शायद हम सबके ऊपर बैठा कार्टूनिस्ट ये सोच रहा होगा की उसके बनाये सबसे खूबसूरत कार्टून "पृथ्वी" पर अब कार्टून "लोग" उसके कार्टून देख कर आहत हो जाते हैं तो लक्ष्मण या शार्ली हेब्दों जैसे कार्टूनो की क्या ज़रुरत हैं, उन्हें ऊपर ही बुला लेता हूँ मजे से बैठ कर खुदके खूब कार्टून बनवायुंगा और खूब हसूंगा।
कार्टून अभिव्यक्ति की वो विधा हैं जिसमे आदमी आपको दो पल टेडी नाक, बड़े कान, मोटा पेट जैसी चीज़ दिखा कर हँसाता हैं और फिर आपको सोचने पर मज़बूर कर देता हैं। और जब व्यक्ति सोचने लगता हैं तो अच्छे अच्छे तानाशाहों को सिंहासन खाली करने पड़ते हैं। लक्ष्मण किसी भी विचारधारा के हो उनके कार्टून कभी किसी की हिकारत नहीं करते थे, किसी को आहत नहीं करते थे। उन्होंने अपनी एक लक्ष्मण रेखा उकेरी जिसे हम कॉमन मैन कहते हैं, जिसे सत्ता/राजनेता रुपी सीता रोज़ लांघ जाती हैं और रोज़ लक्ष्मण का कॉमन मैन उसे वापिस अपनी सीमाओ में आने को कहता हैं उसे चेतता हैं कि वो उसे न लांघे। उनका कॉमन मैन सवाल पैदा करता था। वो व्यवस्था से दुखी होता था परन्तु कुण्डित नहीं होता था, विद्रोही नहीं होता था। व्यवस्था को उखाड़ फेकने से ज्यादा उसे परिवर्तित करने पर ज़ोर देता था। वो भोला हैं, एक नज़र में सत्ता से ठगाया हुआ उसका हाव भाव भौचक्का रहता हैं और फिर वो संभालता हैं और कहता हैं की जनता सब जानती हैं। वो हार नहीं मानता, उसका भाव हमे को फिर से खड़े होने का जज़्बा देता हैं।
लक्ष्मण से कभी नहीं मिला पर चित्रो को कॉपी करने की आदत मुझे उनपर थोड़ा सा लिखने का हक़ तो देती हैं। अपनी इंजीनियरिंग क्लास में जब कुछ नहीं सूझता तो कार्टून कॉपी करने लगता और इस दौरान उनके भी कार्टून छापने (कॉपी, री-ड्रा ) की कोशिश की। उनके जाने से मन दुखी हैं। ऊपर शायद बालासाहब और लक्ष्मण बैठ कर मस्त जाम छलका रहे होंगे।
पर लक्ष्मण का कॉमन मैन नहीं मरा हैं उसका रचियता मात्र हमारे बीच नहीं हैं, और जब तक व्यक्ति सोचता रहेगा और भागदौड़ और निराशा के बीच हंसता रहेगा लक्ष्मण का कॉमन मैन जिन्दा रहेगा, वो खुश भी होगा, दुखी भी होगा, हंसाएगा भी, रुलाएगा भी और कहेगा पगले ऊपर वाले दिमाग सोचने ने लिए दिया हैं और मुँह मुस्कुराने के लिए। तो हँसते हँसते सोचते रहिये।