Monday, January 19, 2015

युगपुरूष की चेतावनी

मैं 'राष्ट्रकवि' श्री रामधरी सिंह 'दिनकर' और उनके समस्त पाठक/प्रशंसको से उनकी कालजयी रचना "कृष्णा की चेतावनी (रश्मिरथी) से छेड़छाड़ करने के लिए अग्रिम माफ़ी मांगता हूँ और आग्रह करता हूँ की पहले उनकी कविता को अवश्य पढ़े।

http://www.geeta-kavita.com/hindi_sahitya.asp?id=152

युगपुरूष की चेतावनी (भभकी)


वर्षो तक सैंडल में घूम घूम,
ऐन.ऐ.सी की चौखट चूम चूम,
आई.आर.अस से आर.टी.आई का सफर,
युगपुरुष के हालत रहे सिफर।
दुर्भाग्य न सब दिन रोता हैं,
देखे आगे क्या होता हैं।

यू टर्न का मार्ग सिखाने को,
सबको "स्वराज" पर लाने को,
नरेन्द्र  को समझाने को,
चुनाव में गाल बचाने को,
युगपुरुष सात आर.सी.आर आये,
आपियो का संदेसा लाये।

दो सीट अगर दो काशी दो,
और बात अगर वो बासी हो,
तो दे दो केवल "इंद्रप्रस्थ",
रखो अपना "जम्बूद्वीप" समस्त।
हम वही धरना लगवायेंगे,
तुम पर आरोप चस्पायेंगे!

लेकिन!!!
लेकिन!!

नरेंद्र! वह भी दे न सका,
आशीष "सेक्यू" समाज की ले न सका,
उल्टे, अरविन्द को ललकारने चला,
जो भगोड़ा था उसे भगाने चला।
जब चुनाव सिर पर आता हैं,
सेकुलरिज्म हरा नज़र आता हैं।

प्रभु ने भीषण खूं "खार" किया,
अपना गला बेनिड्रिल से दो-चार किया,
गुडगुड-बुड़गुड़ गरारे बोले,
युगपुरुष कफ थूक कर बोले-
"हर्षवर्धन" दिखा फिर डरा मुझे,
हाँ, हाँ नरेंद्र! फिर हरा मुझे।

ये देख "कुमार", मुझ में लय  हैं,
ये देख "मनीष", मुझ में भय हैं,
मुझमे विनीत अभिनीत सकल,
मुझमे लय "आमआदमी" का कल।
कि-मींदारी फूलती हैं मुझमें,
नौटंकी झूलती हैं मुझमे।

रिक्शा, भिक्षा इस साल देख,
दिल्ली मेट्रो की वाल देख,
ये देख आजतक का पुण्य प्रसन्न,
ये देख एंडीटीवी का न्यूज़ रन।
"दल्लो" से पटी पड़ी दिल्ली,
पहचान इन्ही से मुझे मिली।

मफलर का सर पर जाल देख,
अन्ना का रालेगण में हाल देख,
कूड़े में जनलोकपाल देख,
मेरा "भोला" स्वरुप विकराल देख।
"शाजिया" नाम मुझही से पाती हैं,
फिर मुझे छोड़ के जाती हैं।

जिह्वा से लगाता आरोप सघन,
साँसों में होता दमा दमन,
और जाती मेरी दृष्टि जिधर,
दिखाई देता "अदाणी" उधर।
मैं तभी मूँदता हूँ लोचन
जब समक्ष "सोनिया-मनमोहन"

कुरुक्षेत्र देख मत हो सुखी,
दिल्ली में तेरा चेहरा "मुखी",
मुझे बांधना चाहे तेरा दल,
पहले बाँध तू नया " जिंदल।"
सेक्यू मीडिया न साध जो सकता हैं,
वो मुझे बाँध कब सकता हैं।

हित "अम्बानी" का तूने नहीं माना,
गैस का मूल्य सही पहचाना,
तो ले, अब मैं भी जाता हूँ,
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ।
चुनाव तक "केजरू " कंगला होगा,
"कौशाम्बी" छोड़ पुनः "लुटियन" बांग्ला होगा।

फिर बैठेंगे "जंतर मंतर",
ढोलेंगे रायता मने  कहे जिधर,
फन अंग्रेजी का डोलेगा,
काल "आशुतोष " मूह खोलेगा।
नरेंद्र! चुनाव ऐसा होगा,
फिर कभी नहीं जैसा होगा।

दिल्ली पर आपिये टूटेंगे,
आरोप-बाण धनुष से  छूटेंगे ,
सौभाग्य राजधानी के फूटेंगे,
"क्रांतिकारी" चैनल सुख लूटेंगे,
नरेंद्र तो भू- शायी होगा,
"मई की जीत" भरमाई होगा।

थी सभा सन्न , कुछ लोग खड़े,
मुस्काये थे या  भू लोट पड़े,
केवल दो नर न डगमग थे
नरेंद्र-अमित सब समझत थे।
दिल्ली करके "किरण" हवाले,
दोने प्रेम से बोले  "भक साले"




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